चाणक्य बहुत ही बुद्धिमान थे।उनकी बुद्धिमत्ता से सभी प्रभावित थे।किंतु चाणक्य सामान्य जीवन जीते थे। सबको यह मालूम था कि वे बहुत ही सरल और सादा जीवन व्यतीत करते थे।
गंगा के किनारे उनकी एक सामान्य सी कुटिया थी, जिसमें वे रहते थे।
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| चाणक्य |
राज्य में उनके अनेक शत्रु थे। शत्रुओं को लगता था कि चाणक्य ने अपने ज्ञान और चातुर्य से बहुत दौलत जमा कर रखी है। और वे लोगों को मूर्ख बनाने के लिए साधारण जीवन व्यतीत करते हैं।
इसी भ्रम में उनके विरोधियों ने मिलकर गंगा-किनारे की उनकी झोंपड़ी में रात को आग लगा दी। चाणक्य उस समय झोंपड़ी के अंदर ही सो रहे थे। आग के कारण चाणक्य की मृत्यु तो निश्चित ही थी। कुछ ही देर में सारी झोंपड़ी जलकर राख हो गई।
सुबह चाणक्य के विरोधी वहाँ एकत्रित हुए और आपस में बातें करने लगे। एक बोला, ‘‘देखा, आखिर मर ही गया न।’’ दूसरा बोला, ‘‘वह तो देख और जान लिया, लेकिन अब यह देखो कि इसने खजाना कहाँ छिपाया है। कही जलकर राख तो नही हो गया?’’ लोगों ने सोचा कि खजाना कुटिया के नीचे जमीन में गाड़ कर छुपाया होगा। इसके बाद सभी उस जमीन की खुदाई करने में लग गए।
बहुत देर तक खुदाई करने के बाद सभी ने देखा कि भीतर एक गहरे गड्ढे में बहुत बड़ी संदूक रखी है। सभी ने मिलकर उस भारी भरकम संदूक को बाहर निकाला। संदूक देखकर एक बोला, ‘‘तो हमारा अनुमान सही निकला। चाणक्य सादा रहने का ढोंग करता था।खजाना तो उसने कुटिया के नीचे छिपाकर रखा था।’’ सभी ने उस संदूक को खोला तो उसके अंदर एक संदूक निकली। इस प्रकार कुल आठ संदूक निकलीं और आखिरी संदूक एक डिबिया जैसी थी।
सभी उत्सुक होकर उसे देखने के लिए छीना-झपटी करने लगे। डिबिया को खोलने पर उसमें सफेद चूर्ण जैसा पदार्थ निकला और छीना-झपटी में वह सभी के अंगों पर लग गया। अंत में चूर्ण के नीचे एक कागज निकला, जिसमें एक श्लोक था, जिसका अर्थ था—चाणक्य को मारने वाले स्वयं जीवित नहीं रह सकते। पता चला कि वह चूर्ण अत्यधिक प्रभावकारी विष था। धीरे-धीरे विष ने अपना असर दिखाना आरंभ किया। सभी विरोधी उस चूर्ण के प्रभाव के कारण गिरने लगेे और मर गए।
एक विरोधी के मुँह से मरते-मरते निकला, ‘‘बड़ा दूरदर्शी था चाणक्य। उसे पता था कि ऐसा होगा।’’

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